Green Finance Benefit Organizations कैसे पहुंचा रही हैं दुनिया को लाभ!

बेहतर भविष्य की राह दिखाती ग्रीन फाइनेंसिंग!

भारत के विकास की कहानी काफी प्रभावशाली रही है, लेकिन ये मुमकिन नहीं होता अगर इसमें environmental challenges को शामिल नहीं किया गया होता। पिछले 10 सालों में भारतीयों ने क्लाइमेट चेंज, पर्यावरण प्रदूषण और वनों के संरक्षण के क्षेत्र में काफी काम किया है। खासकर डीकार्बोनाइजेशन टेक्नीक्स पर low-carbon और green economy की ओर बढ़ने के लिए extraordinary level के नए इन्वेस्टमेंट की पहल भारत में न्यू नॉर्मल बनकर उभरा है। जिसे ग्रीन फाइनेंसिंग कहा जाता है। वहीं  फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए करेंसी और फाइनेंस पर RBI की रिपोर्ट  ‘टूवॉर्ड्स ए ग्रीनर क्लीनर इंडिया’ कहती है कि भारत की ग्रीन फाइनेंसिंग की जरूरत 2030 तक जीडीपी की 2.5% तक होगी। जो पर्यारण संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

ग्रीन फाइनेंसिंग (green financing)

ये एक ऐसा मार्केट बेस्ड इनवेस्टमेंट है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले फैक्टर्स को पहचान कर मार्केट प्रोडक्ट या सेवा के रूप में सुरक्षा प्रदान करता है। इसे सीधे शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि कोई कंपनी अपना वेंचर स्थापित करने के दौरान ये सुनिश्चित करेगी कि उसके उत्पादन के समय पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे और किसी तरह का अगर कोई भी प्रभाव पर्यावरण को पहुंचता है तो उसकी भरपाई के लिए कंपनी के द्वारा कुछ निवेश ग्रीन फाइनेंसिंग के लिए किया गया हो। इसके अलावा जब आप किसी स्टोर से कुछ खरीदते हैं तो प्लास्टिक के बैग की जगह आपको कपड़े या कागज की थैलियां मिलती है ये भी उस कंपनी के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए निवेश किया गया फंड से ही आता है। कुल-मिलाकर ये समझ सकते हैं कि पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए कंपनियों द्वारा जारी फंड ग्रीन फाइनेंसिंग के अंतर्गत आते हैं।

हाल के वर्षों में भारत में इसने काफी लोकप्रियता हासिल की है, सरकार ने ग्रीन फाइनेंसिंग को प्रोत्साहित करने के लिए कई पहल की हैं। जिसमें ग्रीन फाइनेंसिंग इनोवेशन और सस्टेनेबेल प्लेटफॉर्म स्थापित करना एक मिशन की तरह काम कर रहा है। भारत में ग्रीन फिनटेक उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने पर सेंट्रलाइज है।

ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाने ग्रीन फाइनेंसिंग की भूमिका

  • यूरोप की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के पेरिस समझौते की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये हर साल 180 बिलियन यूरो इनवेस्ट करने की जरूरत है।
  • World Economic Forum की मानें तो इस संकल्प को पूरा करने के लिये 2030 तक हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत पड़ेगी।
  • अगर भारत की बात की जाए तो साल 2040 तक देश को बुनियादी ढाँचे के फाइनेंसिंग में करीब 4.5 ट्रिलियन डॉलर इनवेस्ट करना होगा।  
  • इनमें से 2022 तक भारत के राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए 125 बिलियन डॉलर, इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिये 667 बिलियन डॉलर और एफोर्डेबल ग्रीन हाउसिंग के लिये लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी।

एक बात और है जिस पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, ग्रीन फील्ड के विकास के लिये और भी कई क्षेत्रों में इनवेस्ट किया जाना बेहद जरूरी है। जैसे कि एनर्जी एफिसिएंशी। इसमें बहुत अधिक कैपेसिटी है क्योंकि अकेले हाउसिंग फील्ड में मार्केट का 35% और कृषि ट्यूब वेल्स का 18% हिस्सा शामिल है। इसके साथ ही वेस्ट मैनेजमेंट, क्लाइमेंट रेसीलेंट सिटीज (climate-resilient cities), भूमि उपयोग प्रथाओं (land use practices), वनीकरण ( afforestation), वनों की कटाई, ग्रीन बिल्डिंग्स और वायु प्रदूषण जैसे सभी क्षेत्रों में ग्रीन फाइनेंसिंग की जरूरत है। इससे दुनिया जितनी जल्दी हो सके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तैयार हो सकेगी।

ग्रीन फाइनेंसिंग में सरकार की भूमिका

इस संबंध में, भारत सरकार द्वारा उठाए गए सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना की शुरूआत थी। इस योजना ने आठ प्रमुख मिशनों की पहचान की, जिनमें राष्ट्रीय सौर मिशन, उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिए ग्रीन इंडिया मिशन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन मिशनों का उद्देश्य ऊर्जा, परिवहन, कृषि और वानिकी सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा देना था। भारत सरकार ने ग्रीन फाइनेंसिंग करने के लिए कई फंड और संस्थान बनाए। स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए फंड उपलब्ध कराने 2010 में राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (एनसीईएफ) की स्थापना की। इस फंड को भारत में कोयला उद्योग पर लगाए गए कोयला कर से मिले राजस्व का एक हिस्सा प्राप्त होता है।

Climate change इस सेंचुरी के decisive political and economic problem के रूप में उभर कर सामने आया है। गर्वमेंट्स, इन्वेस्टर्स और बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है। लेकिन जरूरी है कि इसके लिए हर व्यक्ति सामने आए ताकि व्यक्तिगत लाभ के साथ ही पर्यावरण के दूरगामी सकारात्मक प्रभाव में भी अपना योगदान दे सकें।

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Rishita Diwan

Content Writer

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