Recycling waste flowers: भारत में श्रद्धा को अर्पित का करने का एक बड़ा तरीका फूलों से है। यहां लोगो अपने ईष्टों को बड़ी संख्या में फूल चढ़ाकर पूजा संपन्न करते हैं। (Recycling waste flowers) लेकिन क्या आप जानते हैं कि बड़ी संख्या में चढ़ाए गए इन फूलों का क्या होता होगा। भगवान पर चढ़ने के बाद आखिरकर इन फूलों का क्या होता होगा, रोजाना किलो टन में चढ़े इन फूलों को नष्ट कैसे किया जाता होगा, तो इसका जवाब यहां पर है। (Recycling waste flowers) दरअसल कई शहरों में इन फूलों को रीसाइकल किया जाता है। इसके लिए विशेष प्लांट लगा है। ऐसे ही यूनिक रिसाइकल का जरिया बन रहा है कुछ महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर। ये कहानी है नैनिताल के कुछ क्रिएटिव महिलाओं की जिन्होंने नैनादेवी मंदिर के फूलों को बायोडिग्रेडेबल वेस्ट का इस्तेमाल करके आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं। Recycling waste flowers)
वेस्ट से बेस्ट बना रही है ‘चेली आर्ट्स’ संस्था
नैनीताल, उत्तराखंड में ‘चेली आर्ट्स’ संस्था पहाड़ी उत्पादों और कुमाऊंनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही है। यह संस्था कई क्रिएटिव काम करती है Recycling waste flowers)जिनमें से मंदिर में चढ़ चुके इन फूलों और पत्तियों की मदद से कपड़ों पर डिजाइन तैयार करने का काम भी शामिल है। इसमें खास बात ये है कि यह सबकुछ वेस्ट चीजों से बनता है।
इको प्रिंट को मिल रहा बढ़ावा
इस कमाल के क्रिएटिव काम को कहते हैं इको प्रिंट, जिसमें पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए फैशनेबल चीजें बनाकर बेची जाती है। इससे डिजाइन किए गए कपड़ों से निकलने वाला रंग पानी में चला भी जाए, तो पानी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। Recycling waste flowers) इसी कांसेप्ट के साथ चेली आर्ट्स ने इस डिजाइन पर काम करने की शुरूआत की और अब इन्हें काफी सराहना और सफलता मिल रही है। Recycling waste flowers)
इस संस्था की एक सदस्य बताती हैं कि यह एक तरह का बॉटनिकल आर्ट है। इसमें सूखे फूलों की पंखुड़ियों, बेकार पड़े पत्ते, प्याज के छिलके जैसी चीजों से कपड़ों पर प्रिंट करने का क्रिएटिव काम किया जाता है। इसके लिए महिलाएं नजदीकी नैना देवी मंदिर और गुरुद्वारा से सूखे हुए फूलों की मालाओं से फूल कलेक्ट करती हैं Recycling waste flowers) फिर उनकी पंखुड़ियों को अलग-अलग करके इस्तेमाल कर इस आर्ट को रूप देती हैं।
इको प्रिंट का प्रोसेस
प्रिंट के लिए पहले कपड़े को साफ करके धो लिया जाता है। फिर फूलों की पंखुड़ियों की डाई तैयार की जाती है। इसे कपड़े पर लगाकर आकर्षक डिजाइन बनाया जाता है। फूलों से बने इस डिजाइन को ‘फुलारी आर्ट्स’ कहते हैं। फिलहाल तो वे इन फूलों से स्टोल, साड़ी और रुमाल जैसी चीजों तैयार कर रहे हैं। लेकिन कपड़ों के अलावा भी यह महिलाएं प्राकृतिक होली के रंग कुमकुम, पीठिया और धूप जैसे कई तरह के आर्गेनिक प्रोडक्ट्स भी बनाती हैं। इस संस्था के द्वारा किया जा रहा काम पर्यावरण के लिए तो ज़रूरी है ही साथ ही वह इस काम से पहाड़ों की 10 महिलाओं को रोज़गार भी मिल रही है।