ऊर्जा और आध्यात्मिकता का संगम है ये पेड़, वेद, पुराणों में मिलता है जिक्र!

इको सिस्टम को मेंटेन करते इस पेड़ का प्राचीन सभ्यताओं से है रिश्ता!

लंबी शाखाएं, घने आवरण, धरती को बांधती जड़ें अक्सर हैरान करती है, कि कैसे कोई वृक्ष इतना विशाल हो सकता है। धरती पर रेंगने वाली चीटिंयां, आकाश में उड़ते पंछी, धरातल पर रहने वाली कई प्रजातियां इसमें एक साथ निवास करती हैं। मान्यताओं और रीतियों से जुड़े इस पेड़ पर मन्नतों के कई धागे लिपटे दिखाई देंते हैं तो एकांत प्रिय कई मुनियों और तपस्वियों ने इसके नीचे अपना ध्यान लगाया है। ऊर्जा और भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब इस वट वृक्ष में दिखाई देता है। जिसे भारतीय पुराणों में कल्पवृक्ष कहा गया है। जिसका अर्थ है “इच्छा पूरी करने वाला पवित्र वृक्ष”

सूक्ष्म जीवों को संरक्षण प्रदान करता, पंक्षियों को आश्रय देता, मुनियों को शांति देता, पर्यावरण को सांस देता ये कल्प वृक्ष ही तो है, जो सभी की इच्छाओं को पूरी कर रहा है, सदियों से जीवन देता ये वृक्ष ‘बरगद’ है। कई सभ्यताओं ने इसके नीचे विकास की गति देखी है। बरगद के कई धार्मिक, इकोलॉजीकल (ecological) और औषधीय (medicinal importance) महत्व हैं। बावजूद इसके आज ये Population pressure और infrastructural development के कारण तेजी से कम हो रहे हैं।

 

बरगद से जुड़ी हमारी जड़ें

फिकस बेंगालेंसिस जो अंजीर परिवार से संबंध रखता है, हजारों वर्षों तक जीवित और पुनर्जीवित होता रहता है। समय के साथ इसमें अधिक तने और शाखाएं भी बढ़ती रहती हैं। भारतीय पौराणिक मान्यताओं, कथाओं ग्रंथों और पुराणों के अनुसार बरगद के वृक्ष में शिव, विष्णु और ब्रह्मा का निवास होता है। यही वजह है कि बरगद के पेड़ को पूज्यनीय माना गया है। भारतीय संस्कृति के रूप में लाखों वर्षों से बरगद आस्था की चादर ओढ़े फल-फूल रहा है। बरगद को हिंदू धर्म में अक्षय वट कहते हैं।

 

बायोडायवर्सिटी का घर ‘बरगद’

बरगद, फ़िकस बेंघालेंसिस पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियों में से एक है बरगद। इसकी खास बात ये है कि इसमें पूरी की पूरी जैव विविधता पनप सकती है। इसमें चींटी से लेकर अलग-अलग प्रकार के पक्षी अपना बसेरा बनाते हैं। है। पक्षियों, फल चमगादड़ों और दूसरे प्राणियों की कई प्रजातियों को ये जीवित रखता है, जो बदले में बीजों को और अधिक फैलाते हैं। इसके अलावा बरगद के पेड़ और इसकी पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की सबसे ज्यादा क्षमता होती है जिससे बरगद के पेड़ पर्यावरण में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन रिलीज करते हैं।

 
30 मीटर तक की ऊंचाई तक पहुंचने की वजह से ये खूब फैलते हैं और इसकी शाखाओं से विकसित होने वाली जड़ें नीचे तक लटकती हैं। बरगद मिट्टी में समाकर नए तनों को बनाती है जो soil erosion को रोकने में मदद करता है
 

क्यों भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है ‘बरगद’?

बरगद का वृक्ष काफी लंबे समय तक हरा-भरा रहता है। इसकी शाखाएं हमेशा बढ़ती और फैलती रहती हैं। बरगद की विशाल संरचना और गहरी जड़े भारत की एकता का प्रतीक मानी जाती हैं। साल 1950 में इसकी पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व को देखते हुए इसे भारत के राष्ट्रीय वृक्ष के रूप में मान्यता दी गई। भारत में पश्चिम बंगाल के हावड़ा में आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डन में 1787 का एक बरगद का पेड़ है। इसे ग्रेट बरगद के वृक्ष कहा जाता है। ये पेड़ दिखने में किसी बगीचे के जैसे लगता है। लेकिन असल में यह एक ही वृक्ष है जो कि 3.5 एकड़ में फैला है। इसकी लंबाई लगभग 80 फीट है।
 

 
अपनी लगातार बढ़ती शाखाओं के कारण बरगद का वृक्ष शाश्वत जीवन को दर्शाता है। सिर्फ भारत ही नहीं कई एशियाई देशों में बरगद के वृक्ष को एकता और जीवन का प्रतीक माना गया है। अपने उपन्यास होथ हाउस में, ब्रायन एल्डिस ने भविष्य की पृथ्वी को दिखाया है जिसमें एक विशाल बरगद ग्रह के आधे हिस्से को कवर रहा है। जो व्यक्तिगत पेड़ों को एक साथ जुड़ने और साहसी जड़ों को शक्ति देने की खोज के लिए माना जाता है।  बरगद साश्वत, जीवंत और एकता का प्रमाण है जो हमारी जड़ों को आपस में जोड़ता है।
 
Note- यह Article कई रिसर्च और मीडिया रिपोर्ट्स पर Based है, seepositive किसी भी भ्रम की स्थिति का विरोधी है, हमारी कोशिश अपने Viewers तक informative content पहुंचाने की है ताकी society में एक positive Change का हम भी हिस्सा बन सकें।

 

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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