क्या है पॉकेट फॉरेस्ट?
पेड़ लगाने और जंगल बसाने की यह तकनीक पर्यावरण के लिए काफी लाभदायक है। इस मेथड के जरिए पार्किंग एरिया, स्कूल के ग्राउंड्स और कबाड़खानों के बचे स्पेस को छोटे जंगलों में बदला जाता है। खास बात को ये है कि टाइनी फॉरेस्ट को शुरुआती 3 साल तक ही पानी देने की जरूरत होती है। इसके अलावा शहरी इलाकों में ये छोटे-छोटे जंगल गर्म तापमान को कम करने में भी मददगार साबित हुए हैं। ये छोटे जंगल वातावरण को ठंडा रखने में सक्षम हैं। इसके अलावा तेजी से जो फायदा दिखाई दे रहा है वो ये है कि पॉकेट फॉरेस्ट बड़े जंगलों की तुलना में 10 गुना तेजी से ग्रोथ कर रहे हैं। ये 30 गुना घने होते हैं और 100 गुना ज्यादा जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) वाले जंगल होते हैं। पॉकेट फॉरेस्ट आसानी से कार्बन डाइऑक्साइन एबजॉर्ब करते हैं। इसके साथ ही वाइल्ड लाइफ को भी ये सपोर्ट करते हैं।
क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सीक्रेट वेपन
इकोलॉजिस्ट्स का ये मानना है कि छोटे जंगल जापानी इकोलॉजिस्ट अकीरा मियावाकी की बंजर जमीन पर छोटे, घने शहरी जंगल बनाने की टेक्नीक से आई है। जो प्रजातियां इन जंगलों में उगाई जाती रही हैं, उनके सफल होने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की ज्यादा संभावना होती है। इसके लिए मिट्टी की स्थिति भी काफी महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाने की जरूरत को पॉकेट फॉरेस्ट पूरा करत है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड एबजॉर्बशन तेजी से बढ़ा है यही वजह है कि ये क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सीक्रेट वेपन के रूप में देखा जा रहा है।
साधारण पौधारोपण से अलग है पॉकेट फॉरेस्ट
पॉकेट फॉरेस्ट की एक जानकार का कहना है कि, टाइनी फॉरेस्ट का कॉनसेप्ट ट्री-प्लांटेशन यानी पौधारोपण से काफी अलग होता है। इसमें सिर्फ सड़क किनारे पेड़ उगाने की बात नहीं होती है और न ही टेरेस फार्मिंग के बारे में ये बात है। इस मेथड के जरिए फॉरेस्ट कवर बढ़ाने की बात को ज्यादा ध्यान दिया जाता है। वो भी छोटे-छोटे पैमाने पर। ऐसी जगहें जहां, छोटे जीवों को लाइफ सपोर्ट मिले।