Lamayuru Monastery: भारत में यहां पर है मूनलैंड, चांद जैसे सरफेस के लिए है प्रसिद्ध

भारत की भौगोलिक बनावट दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय है। यहां के ऊंचे पहाड़, विविधता लिए नदियां, समुद्री सतह, डेल्टा वाले सपाट मैदान, मरूस्थल और वर्षा वाले वन अपनी सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। यही वजह है कि भारतीय भूमि कृषि से लेकर पर्यटन तक के लिए लोगों के लिए एक अनोखा डेस्टीनेशन है। भारत के धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के बारे में तो सभी लोग जानते हैं लेकिन कम ही लोग हैं जो भारत के मूनलैंड के बारे में जानते हैं। दरअसल भारत में एक ऐसी जगह है जो चांद की सतह की तरह दिखाई देती है इसका नाम है लामायुरू गांव। 

लद्दाख में लेह से 127 किमी की दूरी पर स्थित है लामायुरू गांव, ये अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से चांद के सरफेस की तरह दिखाई देता है।

मूनलैंड की तरह दिखाई देती है लामायुरू गांव

समुद्र तल से 3,510 मीटर की ऊंचाई पर बसा ये गांव भौगोलिक बनावट की वजह से काफी खूबसूरत दिखाई देता है। लेह से कुछ ही घंटों के सफर से यहां पहुंचा जा सकता है। अपनी अनोखी भौगोलिक संरचना के कारण यह जगह हर साल हजारों सैलानियों के लिए एक डेस्टीनेशन होता है। पिछले कुछ सालों से ये फोटोग्राफी के लिए पसंदीदा सैरगाह बना हुआ है।


आकर्षण का केंद्र लामायुरू मोनेस्ट्री

लामायुरू मोनेस्ट्री लद्दाख का मुख्य आकर्षण है। लद्दाख की सबसे पुरानी मोनेस्ट्रीज में से एक होने के कारण इससे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर पहले एक झील हुआ करती थी जो बाद में सूख गई और फिर उसी जगह पर मोनेस्ट्री की स्थापना हुई थी। इस मॉनेस्ट्री का इतिहास 11वीं सदी का है, जब महासिद्धाचार्य नरोपा नाम के एक विद्वान ने इसकी नींव रखी थी।


‘Moon Land’ के नाम से है प्रसिद्ध

अपनी भौगोलिक बनवाट की वजह से ये मूनलैंड के नाम से प्रसिद्ध है। झील की पीली-सफेद मिट्टी बिल्कुल चांद की सतह की तरह दिखाई देती है। पूर्णिमा की रात ये और खास होती है जब चांद की रोशनी इस पर पड़ती है तो यहां की मिट्टी हूबहू चांद की तरह चमकती है।


लामायुरू मोनेस्ट्री में कुछ समय बिताने के अलावा पर्यटक यहां पास के गांव में घूमने का भी आनंद ले सकते हैं। यहां के लोग बहुत ही खुशमिजाज, मासूम और गर्मजोशी से भरे हैं, जिनसे मिलकर वहां के इतिहास और भूगोल की जानकारी हासिल की जा सकती है।

लामायुरू उत्सव भारतीय संस्कृति का एक रंग

युरु कब्ग्यात के नाम से मशहूर यह उत्सव साल में एक बार होता है जो लामायुरू मोनेस्ट्री का प्रमुख आकर्षण है, इस उत्सव को 2 दिनों तक बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। हर साल जुलाई-अगस्त महीने में इसे मनाते हैं। इसमें लामाओं द्वारा पारंपरिक मुखौटा नृत्य किया जाता है। पुतले जलाना इस त्योहार की एक महत्वपूर्ण रस्म के रूप में मनाते हैं। इस उत्सव का उद्देश्य है व्यक्ति के अहंकार का नाश होता है।

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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