लोकतंत्र का नया रूप- एक देश : एक चुनाव


क्या मजबूत लोकतंत्र की नींव बनेगा- एक देश : एक चुनाव

भारत में लोकतंत्र (Democracy) एक प्राचीन कॉन्सेप्ट है। यूं ही नहीं कहा जाता है कि भारत का निर्माण भारत के लोगों से हुआ है। विविध संस्कृति, विरासत, खान-पान, व्यवहार में विविधता होने के बावजूद एकता का रंग सिर्फ भारत में ही दिखाई देता है। जिसका निर्माण मजबूत लोकतंत्र से होता है। जीवंत लोकतंत्र का आधार है व्यस्क मताधिकार। Right to Vote जो भारतीय संविधान ने हर भारतीय को दिया है। इसे आम बोल-चाल में चुनाव कहते हैं। स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र की आधारशिला है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है। अगर हम देश में होने चुनावों पर नजर डालें तो हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है। इससे न केवल प्रशासनिक और पॉलिसी डिसीजन प्रभावित होते हैं बल्कि देश आर्थिक बोझ भी उठाता है। इस सबसे बचने के लिये पॉलिसी मेकर्स ने लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया।

पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार एक देश : एक चुनाव पर जोर भी दे रही है। इस बात पर गहराई से बात तब शुरू हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस विचार के समर्थन को आगे बढ़ाया। भारत जैसे बड़े देश में ये बेहद जरूरी है कि संसाधनों, सेवाओं की बचत हो ताकि जनता को दूसरी बेहतर सुविधाएं मिल सके।


क्या कहता है इतिहास?

ऐसा नहीं है कि भारत में पहली बार एक देश: एक चुनाव की बात की जा रही है। भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962, 1967 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जा चुके हैं। इन सालों में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। ये सिक्वेंस तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं अलग-अलग कारणों से भंग कर दी गई (prematurely dissolved) 1971 का लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गया था।


वर्तमान स्थिति (Present situation)

जाहिर है जब बदलाव की कोई बात आती है तो उस पर लंबी चर्चाएं, बहस, विरोध जैसी तमाम चीजें होती हैं। जो कई मायनों में एक स्ट्रांग डेमोक्रेसी की पहचान है। क्योंकि जब तक किसी बात पर विरोध नहीं होगा लोगों को उसके पॉजिटिव और नेगेटिव आस्पेक्ट्स नजर नहीं आएंगे। फ्यूचर की संभावनाओं पर बात कैसे होगी। एक देश: एक चुनाव की बात जब पॉलिसी मेकर्स ने की तो इसके लिए भी कुछ ऐसी ही चीजें सामने आयी। कुछ लोगों का मानना है कि अब देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है, लिहाजा एक साथ चुनाव करा पाना आसान नहीं होगा। तो वहीं दूसरी तरफ पॉलिसी मेकर्स और एक्सपर्ट्स का ये मानना है कि अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो एडवांस टेक्नॉलजी और दूसरे रिसोर्सेज का भी विकास हुआ है। इसलिए एक देश:एक चुनाव की संभावना को अक पॉजिटिव एंगल देना सही साबित हो सकता है।


एक देश: एक चुनाव के फायदे

नीतिगत निर्णयों की निरंतरता (continuity of policy decisions): निर्वाचन आयोग (EC) के चुनावों की घोषणा करने के बाद ही आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू हो जाती है। जिसके कारण चुनाव के दौरान कोई नया पॉलिसी डिसीजन नहीं लिया जा सकता है। एक देश: एक चुनाव से केंद्र, राज्यों और सभी लेवल्स पर मेजर पॉलिसी डिसीजन में देरी नहीं होगी।

चुनावों की लागत में कमी (Reduction in cost of elections):

चुनावों के दौरान प्रचार-प्रसार पर राजनीतिक पार्टियां काफी खर्च करती हैं। बार-बार होने वाले चुनावों की वजह से टैक्सपेयर का पैसा मनमाने रूप से खर्च किया जाता है। लेकिन अगर एक साथ चुनाव कराया जाएगा तो राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च पर्याप्त रूप से कम होगा। इससे इलेक्शन के दौरान होने वाले रेस फंड का रिपीटिशन नहीं होगा। जो कि पब्लिक और बिजनेस कम्यूनिटी के लिए एक परेशानी का सबब होते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इसके अलावा निर्वाचन आयोग द्वारा किये जाने वाले खर्च को भी कम किया जा सकता है।

सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची का इस्तेमाल होगा। इससे वोटर लिस्ट में लगने वाले समय और धन की बचत होगी।


नागरिकों के लिये भी आसानी हो जाएगी क्योंकि उन्हें एक बार लिस्टेड हो जाने के बाद वोटर लिस्ट अलग- अलग विधानसभा और लोकसभा के लिए नहीं बनवाना पड़ेगा।

सुरक्षा बलों की तैनाती में बचेंगे पैसे:

चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से पूरा कराने के लिये बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी और अर्द्धसैनिक बलों की ड्यूटी लगाई जाती है। इसमें बड़े लेवल पर बार-बार चुनावों में सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। करोड़ों रुपए इसमें खर्च होते हैं, जिसमें कमी आएगी। एक साथ चुनाव आयोजित होने से इस तरह की तैनाती की आवश्यकता कम होगी।

हॉर्स-ट्रेडिंग में आएगी कमी:

भारतीय चुनावों में एकदम सामान्य बात है कि चुनावों के समय कई दलों के नेता पैसों की लालच में राजनितिक पार्टियां बदल लेते हैं। इसे हार्स-ट्रेडिंग के नाम से जाना जाता है। इससे जहां एक तरफ देश पर आर्थिक समस्या तो आती ही है साथ ही लोगों का विश्वास भी जनप्रतिनिधियों पर से हटता है। एक देश: एक देश एक चुनाव के कॉन्सेप्ट दल बदलने वाले नेताओं को लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में लगने वाले समय में बार्गेनिंग का समय नहीं मिलेगा।

‘फ्रीबीज़’ में कमी और राज्य की फाइनेंशियल स्थिति में सुधार:

 बार-बार चुनावों के कारण सरकारें हर चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिये कुछ पॉलिसी बनाती हैं जो रियालिटी से कहीं अलग होते हैं। जैसे- फ्री में राशन देने का वादा, नौकरियों का वादा, जरूरी संसाधनों में कटौती और सब्सिडी का वादा। इससे राज्य और देश पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। हालाँकि इसे पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन सरकारों से फ्री में गिफ्ट फ्रीबीज़ (Freebies) की घोषणा करने की फ्रीक्वेंसी में कमी आएगी। बार-बार चुनावों के कारण ऐसी स्थिति पैदा होती है कि कई राज्य सरकारें फाइनेंशियल क्राइसेस का शिकार हो जाते हैं। चुनावों की संख्या कम होने से उनकी वित्तीय स्थिति बेहतर होगी।


Indian Constitution में कई नियम-कानून बनाए गए हैं ताकि किसी भी स्थिति में भारत के किसी भी निवासी को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। पॉलिसी मेंकिंग के लिए भी भारतीय संविधान में कई नियम और दायरे बनाए गए हैं। केंद्र सरकार ONOE को लागू करने के हर एंगल पर विचार कर रही है ताकि भविष्य में ये किसी भी तरह से नेगेटिव इंपैक्ट न छोड़े। इस महत्वपूर्ण कदम के लिए केंद्र सरकार एडिशनल स्टडी, डाटा इवॉल्यूशन और इस कॉन्सेप्ट को लागू करने के तरीके पर वोटर्स, अपोजिशन पार्टीज और लोकल कम्यूनिटीज की राय जैसी तमाम बातों पर सोच-विचार कर रही है। इस तरह किसी महत्वपूर्ण फैसले के लिए पूरे देश को तय करने का अवसर दिया जा रहा है ताकि एक देश: एक चुनाव भविष्य के लिए एक नई सोच की नींव बनें।
नोट– Seepositive हर उस positive thoughts का समर्थन करता है जो देशहित में है, किसी की भावनाओं को आहात करने की हमारी कोई मंशा नहीं है। यह लेख मीडिया रिपोर्ट्स, एक्स्पर्ट्स के लेख और कई समाचारों पर आधारित एक पॉजिटिव कंटेंट की तरह है।
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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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