स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत जहां देशभर के शहरों ने वेस्ट मैनेजमेंट सोर्स डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले वेस्ट को खत्म करने की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया है वहीं दूसरी तरफ वेस्ट को रियूज करने का भी ट्रेंड काफी चल रहा है। ऐसे कई कोशिशें की जा रही है कि कचरे को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाया जाए वो भी पर्यावरण को बिना नुकसान पुहंचाए। वहीं इन प्रयासों के बीच वेस्ट से एनर्जी बनाने के लक्ष्य पर भारत में कई जगह काम हो रहे हैं। इसके लिए विभिन्न शहरी स्थानीय निकाय कचरे को ऊर्जा में बदलने के लिए कई तरह के इनोवेशंस पर काम कर रहे थे और इस दिशा में उनके प्रयोग और रिसर्च कड़ी मेहनत के साथ निरंतर जारी है।
भारत अब विकसित देशों की तरह कचरे से ऊर्जा उत्पादन करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वहीं इस दिशा में सबसे खास उपलब्धि महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ की है, जहां नगर निगम के वेस्ट टू एनर्जी प्लांट्स में बनी ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत पिंपरी चिंचवड़ महानगर पालिका और एंटोनी लारा रिन्यूएबल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की साझेदारी में मोशी में 14 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता वाले ‘वेस्ट टू एनर्जी’ प्लांट का उद्घाटन अगस्त में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। यहां 700 टन प्रतिदिन (TPD) सूखे कूड़े के इस्तेमाल से हर दिन 14 मेगावाट बिजली बनाया जा रहा है।
कचरे से बिजली बनाने का महाराष्ट्र का पहला प्रोजेक्ट
यह कचरे से बिजली बनाने वाला महाराष्ट्र का अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। इसमें कुल जनरेट होने वाली 14 मेगावाट बिजली में से 2 मेगावाट का उपयोग इस प्लांट को चलाने के लिए किया जाता है। इस प्रोजेक्ट से महानगर पालिका के नियमित आने वाले बिजली के बिल में 5 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से लगभग 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक की बचत भी की जा रही है। पिंपरी चिंचवाड़ शहर में प्रतिदिन लगभग 1150 मैट्रिक टन कचरे को प्रोसेस किया जाता है जिसमें 700 मैट्रिक टन सूखा कचरा है और बाकी 450 मैट्रिक टन गीला कचरा कंपोस्ट में बदल दिया जाता है।
यह प्रोजेक्ट भारतीय शहरों में इकट्ठा किए गए कचरे के गुणों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें कचरे को जलाकर वैज्ञानिक विधि से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इसके अलावा अब बिजली संयंत्र से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल उन्हें पावर ग्रिड से जोड़कर भी किया जा रहा है। फिलहाल लगभग 11.6 मेगावाट बिजली निकटवर्ती सबस्टेशन के ग्रिड को भेजी जाती है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मोड के तहत इसे डेवलप किया गया है। यह प्रोजेक्ट 21 साल तक चलेगा। इस प्रोजेकट पर कुल 300 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इस प्रोजेक्ट में ट्रीटेड वॉटर का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी वजह से स्वच्छ जल की बचत होती है।
कर्नाटक में बेंगलुरु राज्य स्थित कन्नाहल्ली में साल 2021 में एक वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के प्रोजेक्ट पर सबसे पहले काम शुरू हुआ था। यहां बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) और सैटारेम एंटरप्राइसेस प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए थे जिसके जरिए प्लांट पर निर्मित ऊर्जा बिजली कंपनियों को बेची जा सकती है। इस तरह से सिर्फ बेंगलुरु के लैंडफिल पर जाने वाले कई हजार टन कचरे कम हो गए।
दूसरे राज्य भी ले सकते हैं प्रेरणा
महाराष्ट्र और कर्नाटक के इस कदम से दूसरे राज्य और शहर भी प्रेरणा ले सकता है। देशभर में कई और जगह इसी तरह से शहरों में वेस्ट को एनर्जी में परिवर्तित करने के लिए प्लांट लगाने पर जोर दिया जा रहा है और उससे बड़ी उपलब्धि यह है कि इस उर्जा को तैयार कर शहरी स्थानीय निकाय बिजली बेचकर सर्कुलर इकोनॉमी की दिशा में भी लाभ कमाया जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में भी वेस्ट टू एनर्जी के क्षेत्र में काम कर रही है। यहां 4 वेस्ट टू एनर्जी प्लांट स्थापित हो चुके हैं। इसके साथ ही एक प्लांट 2400 टीपीडी क्षमता के साथ 24 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है।
देशभर के शहरों में के साथ ऊर्जा उत्पन्न कर रहे ‘वेस्ट टू एनर्जी’ प्लांट वेस्ट से एनर्जी उत्पन्न करने के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है। पिंपरी चिंचवाड़ महानगर पालिका की पहल यह पहल पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है।