मध्यप्रदेश का धतूरा गांव बना ‘क्लाइमेट स्मार्ट विलेज’, क्लाइमेट चेंज से मुकाबला करने को है तैयार!

मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित है धतूरा गांव जहां के किसान देवशरण पटेल 53 साल के हैं। देखने में देवशरण किसी व्यवसायी किसान की तरह नहीं बिल्कुल सादे और पारंपरिक किसान की तरह ही दिखते हैं। उनके पास खेती भी कुछेक 2 एकड़ की ही होगी। लेकिन देवशरण की खेती को लेकर तैयारी किसी एग्रीकल्चर इंजीनियर को भी पीछे छोड़ती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि देवशरण ने जहां एक तरफ फसलों की देखभाल के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग का रास्ता अपनाया है वहीं दूसरी तरफ उन्होंने बारिश के पानी के लिए खेत के बीचो-बीच एक छोटा सा तालाब भी खुदवाया है ताकि बरसात के पानी को वे जमा कर सकें। यही नहीं देवशरण खाद के लिए नीम, कनेर, बेशर्म (बेहया या थेथर), अकवन (आक) सहित कई पत्तियों की मदद से कंपोस्ट खाद बनाते हैं। हाथ से बनाए कीटनाशक के छिड़काव के लिए देवशरण ने बैटरी से संचालित मशीन भी सरकार की मदद से बनाया है। कीटनाशन को देवशरण ने छोटी इल्लियों की मदद से बनाया है। वे कहते हैं कि, ” यह कीटनाशक रामबाण है। मैं अपने खेत में रासायनिक खाद भी नहीं डालता, बल्कि ‘जीवामृत’ नामक प्राकृतिक खाद खुद बनाता हूं। आत्मविश्वास से भरे रामशरण कहते हैं कि “मेरा खेत मौसम की मार सहने के लिए पूरी तरह से तैयार है। बारिश हो या सूखा पड़े, मैंने खेत को हर तरह से तैयार रखा है,”

ये कहानी सिर्फ देवशरण की नहीं बल्कि धतूरा गांव के लगभग किसानों की है जिन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाकर क्लाइमेट चेंज से लड़ने का एक बेहतरीन रास्ता खोजा है। लेकिन उनकी खेती में ये बदलाव पहले नहीं था। धतूरा गांव के सभी किसानों में ये बदलाव तब आया जब उनका गांव पांच साल पहले आई ‘क्लाइमेट स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट’ के लिए चुनी गई। इस कार्यक्रम के तहत किसानों को मौसम की मार सह सकने वाली खेती करने का तरीका सिखाया गया।

क्लाइमेट स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट

साल 2017 में किसानों को स्मार्ट लेकिन पर्यावरण अनुकूल खेती से जोड़ने के लिए क्लाइमेट स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट की शुरूआत की गई। इसके तहत मध्य प्रदेश के तीन जिलों सीहोर, सतना और राजगढ़ में पांच साल के लिए क्लाइमेट स्मार्ट विलेज प्रोग्राम चलाया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य खेती के दौरान उत्पन्न हो रहे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना था। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने और उसके रिस्क को कम करने के लिए मिट्टी-जल संरक्षण और सूखा-बाढ़ सहनशील किस्म के बीजों से खेती करना है।

हाल ही में जारी हुए क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी रिपोर्ट (Climate Vulnerability Report) में इस बात का खुलासा हुआ कि मध्यप्रदेश के ये तीन जिले क्लाइमेट वल्नरेबलिटी की रेंज में आते हैं। जिसका मतलब ये हुआ कि आने वाले समय में इन जिलों पर जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। पहले ही मध्य प्रदेश को जलवायु परिवर्तन के संबंध में संवेदनशील माना गया है।

राज्य की अर्थव्यवस्था और बड़ी जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए पहले ही कृषि और वन आधारित संसाधनों पर आश्रित है। राज्य के लिए अनुमानित क्लाइमेट रिस्क में मैक्सिमम और मिनिमम टेंम्परेचर में वृद्धि, मानसून का अनियमित होना, तेज और कम वर्षा का अनुपात नहीं होना, बारिश के दिनों की संख्या में कमी होना, गर्मियां लंबी होना, सूखे और बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि जैसी स्थितियां दिखाई दे रही है।

लाइमेट स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट का मिलेगा फायदा

इस प्रोजेक्ट से जुड़े रिसरर्चर्स का कहना है कि योजना के तहत किसानों को विपरीत मौसम में भी उपज देने वाले बीज के अलावा ऑर्गेनिक खाद बनाना सिखाया जा रहा है। पानी के इस्तेमाल को कम करने के लिए मंचिंग पॉलीथिन भी दिए गए हैं जिसका प्रयोग पौधों के जड़ों को ढकने के लिए किया जाता है।

यही नहीं किसानों को खेत में तालाब की खुदाई, धानों की सीधी बुआई, बेड बनाकर दलहन और सोयाबीन की खेती, पराली को जलाने के बजाए खाद बनाना जैसी उपयोगी गतिविधियों से जोड़ा गया है। ताकि किसान बदलते मौसम की वजह से खेती में नुकसान न झेलें।  इस प्रोजेक्ट से जुड़े शोधकर्ताओं का दावा है कि इन प्राकृतिक तौर-तरीकों से न सिर्फ किसानों की लागत कम होगी बल्कि मिट्टी और फसल की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। इस बात का उदाहरण हैं देवशरण पटेल, जिनका जिक्र हमने लेख की शुरूआत में ही किया था….

दरअसल इस प्रोजेक्ट में मिट्टी की जांच भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत की जाती है। इसमें भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (IISS) की वरिष्ठ वैज्ञानिक संगीता लेंका ने मिट्टी परीक्षण किया है। उन्होंने बताया कि जिन किसानों ने इस प्रोजेक्ट के तहत खेती की है उनके खेतों में मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार देखा गया है। सतना के अलावा राजगढ़ और सीहोर जिलों के गांवों से भी मिट्टी की जांच हुई। रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चला कि राजगढ़ जिले में मिट्टी में जैविक एक्टिविटी में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई।

बढ़ने लगा है किसानों का उत्पादन

देवशरण दो एकड़ में प्राकृतिक तरीके से खेती करते हैं। उनका कहना है कि सामान्य तरीके से खेती करने में खाद, बीज और कीटनाशक मिलाकर गेहूं का एक एकड़ का खेत तैयार करने में 10 से 12 हजार रुपये का खर्च होता है। जबकि प्राकृतिक तरीके से एक एकड़ में पांच से सात हजार रुपये का खर्च हो जाता है। देवशरण पटेल ने अनुभव किया कि फसलों की गुणवत्ता तो बढ़ी ही है साथ ही उनकी खेती में फसलों के साथ मिट्टी और पानी की उपयुक्तता भी देखी गई है।

Climate Smart Village से दूसरे गांव ले सकते हैं प्रेरणा

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव शहरों के साथ-साथ गांवों पर भी दिखाई देने लगा है। इस परेशानी से निपटने के लिए ग्रामीण क्षेत्र काफी हद तक प्रभावी हो सकते हैं क्योंकि खेती की मदद से किसान प्रकृति की सुरक्षा कर सकते हैं। ऐसे कार्यक्रमों के तहत खेती में कार्बन उत्सर्जन कम करने और खेती के तरीकों में बदलाव कर जलवायु अनुकूल धरती का पुन:निर्माण किया जा सकता है।

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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