
इस लेख की शुरूआत एक युवा लड़की की कमाई से करते हैं। बस्तर के एक छोटे से जिले दंतेवाड़ा की रहने वाली रेणुका सोशल मीडिया पर बस्तर से जुड़ी जानकारी और पर्यटन संबंधी कंटेंट से अच्छी खासी कमाई कर रही हैं। लिहाजा अपनी कमाई से वे टैक्स का भुगतान भी करती हैं। ये सिर्फ रेणुका की ही बात नहीं बल्कि कई दूसरे आर्टिस्ट की भी है जो अलग-अलग क्रिएटिव कामों से अच्छी कमाई या कारोबार कर रहे हैं। इनमें संस्कृति, पर्यटन, आर्ट-कल्चर, शॉर्ट फिल्म जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों ने जहां लोगों को रोजगार से जोड़ा है वहीं भारतीय इकोनॉमी (Indian economy) को भी मजबूत करने का काम किया है। ये सभी क्षेत्र सांस्कृतिक पर्यटन की श्रेणी में आते हैं।
भारत का सांस्कृतिक पर्यटन दुनियाभर के लाखों लोगों को अपनी ओर तेजी से आकर्षित कर रहा है। सांस्कृतिक और क्रिएटिव दुनिया में भारत का बढ़ता हुआ यह कद साफ करता है कि भारतीय क्रिएटिव इकोनॉमी (Indian economy) देश के लिए आर्थिक विकास की अगली लहर चलाने में कामयाब हो सकती है।
विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भारत की पहचान
विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भारतीय संस्कृति एक अमिट छाप छोड़ती है। यहां की कला-संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान और त्यौहार वैश्विक स्तर पर एक आश्चर्य की तरह दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है और यही नया कल्चर इन दिनों क्रिएटिव इकोनॉमी (Indian economy) के रूप में उभर कर सामने आया है।
क्या कहता है सर्वे?
हाल ही में एक्जिम बैंक ऑफ इंडिया ने एक सर्वे के हवाले से कहा था कि, भारत की क्रिएटिव इकोनॉमी ने 2019 में 121 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात (Export) किया था, जो आने वाले समय में निश्चित रूप से शानदार तेजी से आगे बढ़ेगा। जहां एक तरफ मीडिया और मनोरंजन देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक निर्यात को लीड करते हैं वहीं दूसरी तरफ रचनात्मक अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ रही है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाईयां दे सकती है।
सांस्कृतिक क्षेत्र बड़े जॉब क्रिएटर
सांस्कृतिक क्षेत्र में भी भारत के एक बड़े रोजगार सृजक (Job Creator) होने की संभावना दिखाई दे रही है।अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद (ICRIER) और एडीबीआई सहयोगी अनुसंधान प्रोग्राम अनुसार इस क्षेत्र में देश के कुल रोजगार का 8.3% हिस्सा एक्टिव है, जो कई विकसित देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है। यह क्षेत्र बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार प्रोवाइड करता है। जो भारत को अपनी पूर्ण आर्थिक क्षमता का एहसास करने के समय की मांग है।
UNCTAD के अनुसार सांस्कृतिक और रचनात्मक उद्योग वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 3% भाग है और लगभग 30 मिलियन लोगों को रोजगार देते हुए 2.25 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का सालाना राजस्व उत्पन्न करता है। इन आंकड़ों की मानें तो ये साफ रूप से दिखाई दे रहा है कि भारत इस क्षेत्र में दूसरे देशों से आगे निकल सकता है, जहां पहले से ही विभिन्न स्तरों पर अनेक इनोवेटिव कदम उठाए जा रहे हैं।
बौद्धिक और रचनात्मक संसाधनों को मिलता है बढ़ावा
क्रिएटिव इकोनॉमी को बढ़ावा देने वाले ये क्षेत्र बौद्धिक और रचनात्मक संसाधनों को भी उपयोग करने और बढ़ावा देने के लिए एक बहुत बड़े साधन के रूप में स्थापित हो चुके हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि संस्कृति उन तरीकों को प्वाइंट करती है, जिसमें लोग यह अनुभव करते हैं कि समाज कैसे सोचता है, कैसा व्यवहार करता है, कैसे आगे बढ़ता है और दूसरों के साथ प्रोडक्टिव और मानवीयता के साथ पेश आता है। सांस्कृतिक उद्यमशीलता ये साबित करती है कि देश की सॉफ्ट पावर के निर्माण में योगदान देने वाले प्रोडक्ट, सर्विस और अनुभवों के जरिए सांस्कृतिक स्थलों, विरासतों, संसाधनों और रचनात्मक प्रतिभाओं को बढ़ावा देने का काम हो रहा है। देश के लिए आवश्यक इस पहल का सबसे अच्छा हिस्सा यह है कि यह भारत की कला, शिल्प, संगीत, योग, आध्यात्मिकता, धार्मिक स्थलों, फिल्मों और रंगमंच, संगीत कार्यक्रम, ऑडियो और वीडियो कला, डिजाइन, विरासत के बारे में जागरूकता हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक विकास की मजबूती है।
वहीं इसका एक और उदाहरण है RRR के ‘नाटू नाटू’ गीत और शॉर्ट फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को इस साल प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार मिलना। ये बताती है कि भारतीय सांस्कृतिक और रचनात्मक अर्थव्यवस्था भले ही देर से ही लोगों के सामने आयी लेकिन अपनी मजबूत स्थिति में आज ये है। विभिन्न तरह के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, स्टैंडअप्स, पॉडकॉस्ट के माध्यम से रचनात्मक कंटेट और कहानी कहने की कल्पनाशील कौशल के कारण ही भारत को अब दुनिया के लिए भविष्य का कंटेंट हब कहा जा रहा है, जो क्रिएटिविटी के जरिए मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में हमें स्थापित कर रही है।