किसी भी किसान पिता के लिए ये कितनी बड़ी बात होगी कि गांव-खेड़े से निकलकर उसकी बेटी देश के लिए मेडल जीतती है और खेल के ही बदौलत उसे बड़ी प्रशासनिक नौकरी भी मिलती है। ये कहानी है देश की उस युवा खिलाड़ी की जिन्होंने कई रुढ़ियों को तोड़ते हुए अपना मुकाम हासिल किया। उनका नाम है पारुल चौधरी, जिन्होंने एशियन गेम्स में 3000 मी. स्टीपलचेज का राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम किया है।
पारुल चौधरी और स्टीपलचेज प्रतियोगिता
एशियन गेम्स के स्टीपलचेज प्रतियोगिता के फाइनल में भारत की पारुल ने 9:27:63 के समय के साथ दूसरे नंबर का स्थान हासिल कर सिल्वर मेडल जीता। पारुल ने हाल ही में बुडापेस्ट में खेले गए विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की तीन हजार मीटर स्टीपलचेज के फाइनल में भी कमाल का खेल दिखाया था। भले ही वे इस दौड़ में 11वें स्थान पर रही थीं, लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया। विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने 9:15.31 के समय के साथ दौड़ को पूरा किया। इसके साथ उन्होंने पेरिस ओलंपिक के लिए भी क्वालिफाई कर लिया।
अब जानते हैं स्टीपलचेज क्या है, दरअसल ये एक चुनौतीपूर्ण ट्रैक-एंड-फिल्ड गेम है। जिसमें खिलाड़ियों को तरह-तरह की चुनौतियों को पार करना होता है। इस खेल में स्पोर्ट्सपर्सन को कुछ निश्चित बाधाएं और पानी की छलांग को पार करते हुए दौड़ खत्म करनी होती है। तीन हजार मीटर के दौरान कई लैप को भी पार करना होता है। दौड़ के बीच में हर्डल्स यानी बाधाएं और पानी के कैनन होते हैं। खिलाड़ी इससे होकर आखिरी लैप तक पहुंचने की कोशिश करता है और आखिरी लैप में सिर्फ दौड़ पूरी करनी होती है। खिलाड़ी शुरुआत में अपनी एनर्जी सेव करके रखते हैं। आखिरी में 100-200 मीटर स्प्रिंट के दौरान पूरी ऊर्जा लगाकर प्रतिस्पर्धा करते हैं।
पिता हैं किसान
15 अप्रैल, 1995 को पारुल का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ। उनके पिता किशनपाल सिंह जिले के दौराला क्षेत्र में किसानी करते हैं। पारुल के मुताबिक जब उन्होंने खेलना शुरू किया तब उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। ग्रामीण क्षोत्र से संबंध रखने की वजह से लोग सवाल करते थे कि खेल में करियर बनाने से मुझे क्या फायदा मिलेगा। लेकिन आज उन्होंने वो कर दिखाया है जिससे महिलाओं के घर से बाहर निकलकर अपने सपनों को पूरा करने के प्रयासों को बल मिला है।