Bhikaiji Cama: वह भारतीय महिला जिन्होंने पहली बार विदेशी जमीन पर फहराया भारत का झंडा!

Bhikaiji Cama: मैडम भीखाजी कामा वह महिला थीं, जिन्होंने देश प्रेम की परिभाषा को एक अलग ही रूप दिया। उन्होंने निडर होकर भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी और इतिहास के पन्नों में क्रांतिकारी महिला के रूप में दर्ज हो गईं। दरअसल भारत की आज़ादी से चार दशक पहले, वर्ष 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा फहराया गया और भारतीय झंडा फहराने का दमखम रखने वाली महिला ही भीकाजी कामा (Bhikaiji Cama) थीं।
 
24 सितंबर 1861 में मुंबई के एक पढ़े-लिखे पारसी परिवार में भीकाजी कामा (Bhikaiji Cama) का जन्म हुआ। 1885 में उनकी शादी उस जमाने के प्रसिद्ध व्यापारी रुस्तमजी कामा से हुई। ब्रितानी हुकूमत (British rule) को लेकर दोनों के विचार एकदम अलग थे। जहां रुस्तमजी कामा ब्रिटिश सरकार के हिमायती थे, तो वहीं भीकाजी एक मुखर राष्ट्रवादी लीडर थीं। सेवा-भावना भीकाजी कामा (Bhikaiji Cama) की पहचान थी। साल 1896 में जब भारत प्लेग की चपेट से जूझ रहा था, तब उन्होंने दिन-रात मेहनत कर पीड़ितों की सेवा की। पीड़ितों तक हर संभव मदद पहुंचाने का काम उन्होंने किया। और आखिर में भीकाजी कामा खुद भी प्लेग की चपेट में आ गईं। बीमारी से ठीक होने के बाद उन्होंने समाज सेवा का काम तो जारी रखा, साथ ही भारतीय स्वाधीनता संघर्ष (Indian independence movement) का हिस्सा भी बन गईं।
 
बात 21 अगस्त, 1907 की है, जब जर्मनी के शहर स्टटगार्ट में एक अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें मैडम भीकाजी कामा ने भारत का नेतृत्व किया। तब भीकाजी कामा की उम्र 46 वर्ष थी। मैडम कामा पर किताब लिखने वाले रोहतक एम.डी. विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर बी.डी.यादव कहते हैं कि, “उस कांग्रेस में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों के देशों के झंडे फहराए गए थे और भारत के लिए ब्रिटिश सरकार का झंडा फहराया जाना था। लेकिन तब मैडम भीकाजी कामा ने ब्रिटिश सरकार के झंडे को फहराने से मना दिया और भारत का एक झंडा बनाया और उसे सम्मेलन में फहराया।” अपनी किताब, ‘मैडम भीकाजी कामा’ में प्रो.यादव ने लिखा है कि झंडा फहराते हुए भीकाजी ने ज़बरदस्त भाषण दिया और कहा, “ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है, इसे सलाम करो।”
 
कामा ने जिस झंडे को फहराया था वह आज के झंडे से दूसरा था, यह झंडा आज़ादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था।
 
कामा हर उस प्रयास का हिस्सा बनीं जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम को जीवंत बनाता रहे। इस वाकये के बाद मैडम कामा ने जेनिवा से ‘बंदे मातरम’ नाम का ‘क्रांतिकारी’ जर्नल छापना शुरू कर दिया। इसके मास्टहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही जिसे मैडम कामा ने स्टटगार्ट में फहराया था।
 
धीरे-धीरे मैडम कामा ब्रिटिश सरकार की आंख की किरकिरी बन गईं, उन पर पैनी नज़र रखी जाने लगी। लॉर्ड कर्ज़न की हत्या के बाद मैडम कामा साल 1909 में पेरिस चली गईं, जहां से उन्होंने ‘होम रूल लीग’ की शुरूआत की। उनका लोकप्रिय नारा था, “भारत आज़ाद होना चाहिए; भारत एक गणतंत्र होना चाहिए; भारत में एकता होनी चाहिए।” तीस साल से ज़्यादा तक भीकाजी कामा अपने भाषणों और क्रांतिकारी लेखों के ज़रिए देश की आज़ादी के हक़ की मांग को आवाज देती रहीं।
 
स्थितियां-परिस्थितियां चाहे जो भी रही हों, चाहे कामा भारत में रही या विदेशी धरती पर। उन्होंने भारतीय स्वराज के मांग की लौ को बुझने नहीं दिया। वर्ष 1936 में 74 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। भीकाजी कामा भारत की बुलंद आवाज थीं, वे सदैव भारतीय दिलों में अमर रहेगी।
SP LOGO

Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

CATEGORIES Business Agriculture Technology Environment Health Education

SHARE YOUR STORY

info@seepositive.in

SEND FEEDBACK

contact@seepositive.in

FOLLOW US

GET OUR POSITIVE STORIES

Uplifting stories, positive impact and updates delivered straight into your inbox.

You have been successfully Subscribed! Ops! Something went wrong, please try again.
CATEGORIES Business Agriculture Technology Environment Health Education

SHARE YOUR STORY

info@seepositive.in

SEND FEEDBACK

contact@seepositive.in

FOLLOW US

GET OUR POSITIVE STORIES

Uplifting stories, positive impact and updates delivered straight into your inbox.

You have been successfully Subscribed! Ops! Something went wrong, please try again.