aazadi ka amrit mahotsava: भारत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली आज़ाद भारत की महिलाएं!



15 अगस्त 2022 को भारत ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है। इन 75 सालों में भारत ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की। फिर चाहे वह अंतरिक्ष में अपनी पहचान स्थापित करना हो या फिर दुनिया में अपना परचम लहराना। हमने हर जगह खुद को स्थापित किया, साबित किया। 15 अगस्त को भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे। हमारी आज़ादी के लिए कई महान नेताओं ने अपना सबकुछ भारत को समर्पित कर दिया। आज़ादी के बाद भारत को स्थापित करने के लिए जिन लीडर्स को याद किया जाता है उनमें कुछ महिलाएं भी शामिल हैं पढ़े आज़ाद भारत की उन महिलाओं को जिन्होंने लिखी नए भारत की कहानी…

सुचेता कृपलानी (Sucheta Kripalani)

आजादी के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने वालों की लिस्ट में सुचेता कृपलानी का नाम भी शामिल हैं। 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला इनका जन्म हुआ। सुचेता ने मुख्य रूप से 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद वे सक्रिय राजनीति में आईं। साल 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री चुनी गईं और आज़ाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

राजकुमारी अमृत कौर (Rajkumari Amrit Kaur)

महिला अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद करने वाली राजकुमारी अमृत कौर को भला कौन भूल सकता है। वे भारत की पहली पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री बनीं। राजकुमारी अमृत कौर संविधान बनाने वाली सभा की सदस्य भी थीं। स्वतंत्रा संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कौर ने महात्मा गांधी की सेक्रेटरी के तौर पर 16 साल तक काम किया। राजकुमारी अमृत कौर ने स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की नींव रखी थी।

विजय लक्ष्मी पंडित (Vijay Lakshmi Pandit)

आज़ादी की लड़ाई में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने वाली विजय लक्ष्मी पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। साल 1932-1933, 1940 और 1942-1943 में वह जेल भी गईं। विजय लक्ष्मी ने संविधान सभा की सदस्य के तौर पर औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर बेबाक होकर अपनी राय भी रखी। वे आज़ाद भारत की रूजदूत रहीं। उन्होंने रूस, अमेरिका और मैक्सिको में भारत के राजदूत के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाई। बाद में वे साल 1953 में यूएन जनरल असेंबली की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और आठवें सत्र की अध्यक्षता भी उन्होंने की।

लीला रॉय (Leela Roy)

संविधान सभा की सदस्य रह चुकी लीला रॉय का जन्म असम के गोलपाड़ा जिले में 2 अक्तूबर, 1900 को हुआ था। साल 1937 में रॉय कांग्रेस में शामिल हुईं। लीला को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनाई महिला समिति में सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। 1946 में लीला रॉय संविधान सभा में शामिल हुईं और बहस में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें हिंदू कोड बिल के तहत महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसे मामलों की पैरवी करने के लिए जाना जाता है।

दक्षिणानी वेलायुधन (Dakshini Velayudhan)

वेलायुधन संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य और इकलौती दलित महिला थीं। उनका जन्म 4 जुलाई, 1912 में कोच्चि में हुआ था। संविधान सभा की पहली बैठक में वेलायुधन ने कहा था, कि ‘संविधान का कार्य इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग भविष्य में किस तरह का जीवन जिएंगे। मैं उम्मीद करती हूं कि समय के साथ ऐसा कोई समुदाय इस देश में न बचे जिसे अछूत कहकर बुलाया जा रहा हो।’

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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