मैं: कृष्ण

प्राचीन काल से एक कहावत प्रचलित है, जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब-तब ईश्वर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। कर्म और धर्म के सही मायने मानव जाति को समझाने, 5000 साल पूर्व श्री कृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुये और लगभग 125 साल इस धरती पर व्यतीत किये। इतने लम्बे जीवन काल में उन्होंने अनगिनत मूल्यवान जीवन के पाठ अपने कर्म, आचरण से सभी के समक्ष रखे। श्री कृष्ण के बारे में इतना कुछ कहा, और लिखा गया है कि कुछ अलग कहने की ना कोई गुंजाईश है ना मेरी समझ।
कृष्ण एक सम्पूर्ण जीवन हैं, उनको समझना और जीवन में उतरना शायद मुमकिन नहीं लेकिन कुछ अंश भी अगर उनके व्यक्तित्व और जीवन पाठ को अपने जीवन में उतार लें, वहीं काफी है।
आज जब कोविड काल के बाद की दुनिया मानसिक स्वास्थ्य, अध्यात्म, शांति की ओर दौड़ने लगी है। वो भूल गये कि भारतीय संस्कृति की नींव ही अध्यात्म है। आजकल एक शब्द बहुत प्रचलन में है “Liberation” यानी मोक्ष। किसी विद्वान ने बहुत सटीक परिभाषा दी है, मोक्ष की……
“मोक्ष के लिये मरने की नहीं, जीने की जरुरत है।”
जीवन काल में सभी रिश्तों का साथ निभाते हुये भी गैर ज़रूरी जुड़ाव से अलग रहना मोक्ष है। श्री कृष्ण के जीवन में यह देखने को मिलता है। उन्होंने अपने जीवन काल में अनगिनत किरदार जिये।
एक कलाकार, एक दोस्त, एक राजनेता, एक प्रेमी, एक राजा, एक आध्यात्मक व्यक्ति, एक फ़िलॉसफर, एक प्रबंधक और हर किरदार की ख़ासियत ये है, कि वो पूरी तरह से जिया गया।
समय बदल रहा है। आज कंस बाहर नहीं है हमारे सभी की भीतर ही है, अपने भीतर ही श्रीकृष्ण भी विराजमान हैं बस उन्हें जागृत करना है।
जैसे पुरानी कहावत है कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ा वैसे ही अब जब हम अंदर से जटिलताओं और कमज़ोरियों से भरते जा रहे है हमें ख़ुद कृष्ण बनना होगा और अपने भीतर के असुरों का विनाश कर स्वयं को दिव्यता प्रदान करनी होगी।
अभी कुछ दिन पहले एक लेख लिखते समय एक विचार आया कि, हमें जीवन एक कलाकार की तरह जीना चाहिये। क्योंकि एक कलाकार अपनी कला में पूरे तन, मन और आत्मा से डूब कर उसे जीवंत करता है। तो सोचिये श्रीकृष्ण के जीवन को, जिन्होंने अनगिनत किरदारों को पूरी तन्मयता से जिया।
कृष्ण जन्माष्टमी ना सिर्फ़ उन जीवन सूत्रों की याद दिलाती है, बल्कि एक मौका है, जब हम अपने अन्दर के श्री कृष्ण को जागृत करें और अपने जीवन को पूरी तन्मयता से जियें।
श्री कृष्ण ने कहा है, कि खुशी एक मनोस्थिति है, उसका बाहरी वातावरण से कोई लेना देना नहीं हैं, वैसे ही श्री कृष्ण को बाहर मत ढूंढो वो हम सभी के हृदय में पहले से ही मौजूद हैं बस उनकी दिव्यता को जीवन में उतार लो। यहीं उनके प्रति सच्ची आस्था का आधार है।
 
|| जन्माष्टमी की हार्दिक शभकामनाएं ||
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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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