सुंदरता के सही मायने आंतरिक सौंदर्य ही हैं, यानि हमारा मन सोच और व्यवहार की सुंदरता। शरीर, मन तथा आत्मा का सौम्य मिश्रण ही हमारे अस्तित्व को संपूर्णता प्रदान करता है। प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों ने भी आंतरिक आत्मा या मन की सुंदरता को प्राण तत्व माना है।
हमने अपने आस पास ही कई बार ऐसे उदाहरण देखे हैं कि कोई बहुत सुंदर है लेकिन फिर भी वो अपनापन और आकर्षण महसूस नहीं होता। दूसरी तरफ कई बार बहुत साधारण नैन नक्श वाले भी बहुत आकर्षित करते है। ये उनके व्यक्तित्व की सुंदरता है।
लेकिन सदियों से सुंदरता को बाहरी चमक-दमक और त्वचा के रंग से मापते आ रहे हैं। यहाँ चर्चा गौर वर्ण और श्याम वर्ण की नहीं क्योंकि मेरा मानना हैं कि अगर हम गोरेपन को सुंदरता का मापदंड बन जाने वाली सामाजिक सोच को बदलने के हिसाब से ही साँवले या “डार्क इस ब्यूटीफुल” का नारा लगाने लगे तो हम फिर उसी रंगभेद कि नीति कि तरफ जा रहे है। त्वचा का रंग गोरा हो या साँवला, सुंदरता त्वचा के रंग नहीं, उसके स्वास्थ से नापी जाए।
सुंदरता की परिभाषा को बदलने से पहले हमें अपनी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता हैं। और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी। बचपन से ही बच्चों में सौंदर्य के नए प्रतिमान बनाए जा सकते हैं जो रंग से इतर हो। बच्चों में शुरुआत से ही ये भावना विकसित करने की ज़रूरत है कि जो प्रतिभासम्पन्न हैं , वह सुंदर है। जो अच्छा इंसान है, जिसका व्यवहार अच्छा है, वो सुंदर है।
सुंदरता के मापदंडों को तय करने में विज्ञापन जगत और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों का भी योगदान रहा है। आंकड़े बताते हैं कि तकरीबन 58,000 करोड़ का स्किन केयर प्रोडक्ट्स मार्किट में हैं। 7 .9 % की दर से यह मार्किट बढ़ रहा है, जो दर्शाता है कि हम किस तरह बाहरी सुंदरता की तरफ लालयित है।
करोड़ों के फैशन और सौंदर्य प्रसाधन उद्योग इस बात के घोतक है कि किस तरह से ये हमारे जीवन में घुसपैठ कर चुका है। सुंदर दिखना , सलीके से रहना, कोई बुरी बात नहीं है। इस से कई लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है। लेकिन ये जूनून जब आपकी मानसिक हालत पर प्रहार करने लगे तो रुक कर सोचना ज़रूरी है।
भारत सरकार का Drugs and Magic remedies act (objectionable advertisements) Amendment bill 2020 के अंतर्गत फेयरनेस क्रीम, हाइट बढ़ने के दावे वाले पेश पदार्थ , ageing रोकने की क्रीम, दांतों की मज़बूती और ख़ूबसूरती, दिमाग तेज़ करने के लिए दवा, जैसे भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का फैसला बहुत ही अच्छा कदम है।
जब हम 21 वीं सदी में हैं, तो समय है सुंदरता के सही मापदंडों को समझ और अपनाने का। और ये काम सिर्फ घर ही नहीं, हर स्तर पर होना चाहिए। घर में माता – पिता अपने बच्चों को सिर्फ शारीरिक रूप से सुंदर दिखने के बीज ना बोये, उन्हें स्वस्थ और आंतरिक सौंदर्य, व्यवहार कुशल, संवेदनशील इंसान, अच्छी शिक्षा और करियर की महत्ता समझाये और जो वो हैं उसमें संतुष्ट और खुश रहना सिखाये ।
कहने को बहुत साधारण सी बात है लेकिन यहीं कुंठाये बच्चों के मन में मनोविकार का रूप कब ले लेती है पता ही नहीं चलता।
आज हम अपने आस पास अवसाद , मानसिक व भावनात्मक रूप से कमज़ोर होना, अपने आप की स्वीकार्यता ना होने के जो उदाहरण देखते हैं वो इसी बात का नतीजा है। सिर्फ बाहरी चमक दमक, अंधी दौड़ में बेतहाशा दौड़ना और अपने आप से दूर होते जाना ज़िंदगी नहीं है। ज़िंदगी को सही तरीके से जीने की पहली शर्त ही स्वीकार्यता हैं ,खुद से प्यार करना तभी ये दायरा बढ़ कर समाज और विश्व को समाहित कर सकता है। जब हम अंदर की सुंदरता को महत्त्व देने लगते हैं तो बाहरी सुंदरता की चिंता ख़त्म होकर हमें आत्मविश्वास से भर देती है।