

23 अगस्त 2023, शाम 6 बजकर 04 मिनट, ये दिन, तारिख और समय हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। क्योंकि इस दिन भारत ने हर भारतीय ने अपने भारतीयता पर गर्व किया है। ये दिन था मिशन मून ‘चंद्रयान-3’ की सफलता का। इस शानदार सफलता की शुरूआत साल 2008 में हुई थी जब भारत ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान मिशन लॉन्च किया था।
चांद पर भारत का सफर
मिशन चंद्रयान-1
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में चंद्रयान कार्यक्रम की अनुमति दी थी। और चंद्रयान कार्यक्रम की शुरुआत हुई। 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान मिशन लॉन्च हुआ। तब सिर्फ चार अन्य देश अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही चंद्रमा पर मिशन भेजने में कामयाब हुए थे। ऐसा करने वाला भारत पांचवा देश था। इस मिशन से चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की जानकारी मिली थी। चंद्रयान-1 का डेटा इस्तेमाल करके चांद पर बर्फ की पुष्टि भी की गई थी।
मिशन चंद्रयान-2
22 जुलाई, 2019 को 14:43 बजे भारत ने चांद की ओर अपना दूसरा कदम बढ़ाया और सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र (एस डी एस सी), श्रीहरिकोटा से जी एस एलवी मार्क-111 एम द्वारा चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया। इससे भी हमें चंद्रयान-3 के लिए काफी मदद मिली।
मिशन चंद्रयान-3
ISRO के 1000 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने मिशन चंद्रयान-3 पर काम किया है। पिछले मिशन की असफलता से सीखते हुए ISRO ने इस बार तमाम सावधानियां बरती और अंत में वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई और भारत चांद फतह में कामयाब हो गया।
क्यों खास है मिशन चंद्रयान-3 ?
मिशन चंद्रयान-3 कई मामलों में खास है, दरअसल चांद का भारतीय मिशन अन्य देशों के मुकाबले काफी सस्ता है। भारत के मिशन मून पर सिर्फ 615 करोड़ रुपये खर्च हुए।
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, मिनरल्स की जांच हो पाएगी।
इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य के रिसर्च के लिए फायदा होगा।
स्पेश सेक्टर में निवेश को लेकर भारत का दबदबा बढ़ेगा।
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, मिनरल्स की जांच हो पाएगी।
इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य के रिसर्च के लिए फायदा होगा।
स्पेश सेक्टर में निवेश को लेकर भारत का दबदबा बढ़ेगा।
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर में लगे पेलोड का काम
विक्रम लैंडर में चार पेलोड्स लगाए गए हैं, जिनमें रंभा, चास्टे, इल्सा और एरे हैं। इसका पूरा नाम Radio Anatomy of Moon Bound Hypersensitive ionosphere and Atmosphere (RAMBHA) है। ये चांद की सतह पर प्लाज्मा कणों के डेन्सिटी का पता लगाएगा और इसके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करेगा।
चास्टे (ChaSTE)
यह दूसरा पेलोड है जिसका पूरा नाम है Chandra’s Surface Thermo physical Experiment- यह चांद के ध्रुवीय क्षेत्र के निकट चांद के तापमान के बारे में जानकारी इकट्ठा करेगा। .
इल्सा
यह तीसरा पेलोड है जिसका पूरा नाम Instrument for Lunar Seismic Activity है। इल्सा लैंडिंग के साइट के करीब सिस्मीसिटी को मापने का काम करेगा। वहीं, चांद के क्रस्ट और मेंटल के बारे में भी जानकारी हासिल करेगा।
एरे (LRA)
यह चौथा पेलोड एरे (LRA) LASER Retroreflector Array है जो चांद की डायनेमिक्स को समझने का काम करेगा।
भारत के इस मिशन की शुरूआत 14 जुलाई को हुई थी। 40 दिनों तक चले मिशन के बाद 23 अगस्त को चांद पर भारत ने सफलता हासिल की है। इसका लाइव टेलीकास्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देखा। चंद्रयान की सफलता के बाद प्रधानमंत्री भारत को संबोधित किया और वैज्ञानिकों को बधाइयां दी।