

भारत की आजादी के 75 साल को हम सब खुशी और उत्साह से मना रहे हैं। लेकिन ये आजादी हमें इतनी आसानी से नहीं मिली है। इसके लिए हमें कई बलिदान देने पड़े। आजादी के अमृत महोत्सव के सेलीब्रेशन में हम उन शहीदों, क्रांतिकारियों और ऐतिहासिक स्थलों-इमारतों को कैसे भूल सकते हैं, जो कभी आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाइयों का हिस्सा रहे हों। इन्हीं में से एक है हमीरपुर की सूर्य घड़ी की कहानी जो आज भी इतिहास के उन बलिदानों की याद दिलाती है जो आजादी के लिए दी गई। यह लेख एक मीडिया वेबसाइट पर छपी खबर पर आधारित है।
यूपी के हमीरपुर जिला मुख्यालय के कलेक्ट्रेट परिषद में एक सूर्य घड़ी स्थापित है। जो देश की आजादी के लिए शहीद हुए क्रन्तिकारियो की शहादत का प्रतीक है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसी घड़ी से समय देखकर जिले के कई क्रन्तिकारियो को फांसी दी जाती थी।
हमीरपुर का इतिहास
हमीरपुर जिले का निर्माण 11 शताब्दी में राजस्थान से आये राजा हमीरपुर देव करवाया था।,समय के साथ यहां मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अपना राज्य स्थापित किया ,18 वी सदी में यहां अंग्रेजो ने दखल दिया और 31 दिसम्बर 1802 में यहां के तत्कालीन राजा से दोस्ती बनाकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के कई जिलों में अपना प्रभुत्व हासिल कर लिया। और हमीरपुर जिले को भी अपने कब्जे में ले लिया,बेतवा और यमुना नदियो के बीच मे स्थित होने के चलते प्राकतिक सौंदर्य से भरपूर इस इलाके को उन्होंने जिला बनाते हुए यहां कलेक्टर आवास,कार्यालय और तहसील का निर्माण करवाया। जिसके बाद उन्होंने यहां दो सूर्य घड़ियों की स्थापना की। इन सभी का निर्माण सन 1818 में अंग्रेज आर्केटेकट एसले द्वारा करवाया गया ,इन समय सूचक यंत्र की मदद से वो समय ,दिनांक, दिन और महीने की गणना करते थे।
समय सूचक यंत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है सूर्य घड़ी
तब के समय सूचक यंत्र को लोग सूर्य घड़ी के रूप में भी जानते हैं। इसकी खास बात यह है कि सूर्य और चन्दमा दोनों के प्रकाश से ये सूर्य घड़ी काम करती थी। इसका आधारस्तम्भ 3 फुट ऊंचा स्टोन के ऊपर बनाया गया था, इसमें एक पीतल की गोल प्लेट और इसकी से जुड़ी एक तिकोनी प्लेट भी लगाई गई थी। इसको इस तरह से तैयार किया गया है कि गोल प्लेट में सूर्य या चन्दमा का प्रकाश पड़ते ही इसमें जुड़ी तिकोने प्लेट की छाया दूसरी तरफ उभर आती थी, छाया जिन नम्बरों पर पड़ती थी उतने ही समय की गणना की जाती थी। घड़ी की मुख्य प्लेट में दिन ,महीने के नाम भी अंकित किए गए है। जिसे इसके जानकार आसानी से देखकर समय,दिन और महीने की जानकारी जुटा लेते थे और इसी के आधार पर वो अपने कामों को संपन्न करते थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्राचीन स्मारकों का असल नमूना है ‘सुर्य घड़ी’